Monday, August 25, 2014

शेखावाटी : शिक्षा, प्रचार और सच्चाई !

सुबह सुबह अख़बार उठाता हूँ..
शेखावाटी से करीब पांच सौ किलोमीटर दूर, गुजरात सीमा से सटे इलाके में अपनी जमीं की एक छोटी सी खबर को ये आँखें पूरे अख़बार में खोजती हैं..
पन्ने पलटता हूँ तो देखता हूँ की एक पूरा पेज शेखावाटी की शिक्षा को समर्पित है..
गर्व होता है शेखावाटी की शिक्षा पर 
चार-पांच प्रसिद्द स्कूलों के बारे में डीटेल्स, उनके धांसू परिणाम ये दिखाते हुए की देखो हमारे यहाँ से कितनी सारी मेरिट आई हुई हैं..
वे डाइरेक्ट एक मेरिट को पूरी स्कूल के परिणाम से जोड़ते हुए आँखों में धुल सी झोंकते दिखते हैं..
शेखावाटी की शिक्षा को देखते हुए जितना गर्व होता उस से कहीं ज्यादा कहीं दुःख भी होता है, कुछ चीजें कचोटती हैं..
अगर पढने वाले बच्चों की संख्या और उनकी विलक्षण प्रतिभा को देखते हुए सबसे कम सफलता शेखावाटी के छात्रों को प्राप्त होती हैं जैसे की अगर बीकानेर के किसी विद्यालय में सौ में से आठ छात्र अस्सी प्रतिशत से ज्यादा अंक अर्जित करते हैं तो शेखावाटी में सौ में से कोई बीस पच्चीस छात्र अस्सी से ज्यादा बना लेंगें परन्तु आगे कम्पीटिशन में जाते ही ये पच्चीस छात्र उन आठ के मुकाबले कहीं नहीं ठहरते हैं.
स्कूल वाले बच्चों को नब्बे से ऊपर प्रतिशत देते हैं.. घरवाले खुश की क्या बेटा अवतरित हुआ है घर में..
नाम रोशन करेगा... फुल फीस देते हैं..
और एक दिन आता है जब असल में कम्पीटिशन आता है.. धांय !
एक और बेरोजगार बढ़ गया..
तब आँखे खुलती हैं पर यह नहीं समझते की जो दिखाऊ अंक दिये गये थे वो तो वास्तव में फीस बटोरने के चक्कर में थे.. अगर कोई ईमानदार अध्यापक उसे उसकी योग्यतानुसार सौ में से पचास अंक देकर उसे ज्यादा पढाई हेतु कहता तो घरवालों को लगता की अरे पचास अंक ? पढ़ाते नहीं है.. स्कूल चेंज !!
एक तो छोरा गया ऊपर से पढ़ाई नहीं करवाने का तमगा...
गुरूजी को आदेश मिलता है की गुरूजी अगर आप हमारी संस्था में गुरूजी बने रहना चाहते हैं तो किसी भी बच्चे को नब्बे से कम अंक ना देवें.. चाहे उसके तीस ही आ रहे हों...
शेखावाटी में शिक्षा का जो बूम आया है, हर कोई पढाई के पीछे पड़ गया है, सरकारी नौकरी ड्रीम बन गया है..
गरीब मजदूर किसान अमीर सभी अपने नौनिहालों को शिक्षा के मार्फ़त नौकरी ,पैसा व सुरक्षित भविष्य दिलवाकर अपना भविष्य व बुढ़ापा सुरक्षित करना चाहते हैं और काफी हद तक यह सच भी है की नौकरीशुदा बेटा खुद को व अपने परिवारजनों को थोड़ा अच्छा जीवन से सकता है..
आम आदमी के इसी स्वपन को भुनाने के लिए कुकुरमुत्तों की तरह प्राइवेट स्कूल पनप गये, परन्तु पनपे इन स्कूलों में ज्यादातर अध्यापक ऐसे ही होते हैं जो या तो उन्हीं के परिवार के लोग/रिश्तेदार होते हैं जो बेरोजगार होते हैं और खुद की स्कूल में ही मास्टर लग के बेरोजगारी का दाग धोते हैं, बाकि भी स्तरहीन स्टाफ रखते हैं जो चंद पैसों में अपनी योग्यतानुसार “पढाते” है..
क्या कभी आपने स्कूल के ब्रांड नेम से आगे जाकर यह पूछा की यहाँ पढ़ाने वाले कौन हैं ?
जनता को यह लगने लगा की सुबह सुबह नहाके अच्छी सी पोशाक, जूते पहनके, बैग, सुंदर किताबें लेके, बस में बैठके जाने वाला और अंग्रेजी में ‘गुड मोर्निंग सर’ बोलने वाला बच्चा निश्चित ही सरकारी नेकर पहनके, पाटी लेके, पैदल जाने वाले, खेलने में ज्यादा मग्न रहने वाले और ‘प्रणाम गुरूजी’ कहने वाले छोरे से कहीं ज्यादा होशियार होता होगा और भविष्य में ज्यादा कमाल दिखाता होगा... क्या दिखाता है ?
इसी प्राइवेटाईजेशन के चक्कर में सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या घटी, शायद शिक्षक भी इसी फिराक में थे..
वो प्रोपर्टी डीलर बन गये.. बाकी बचे छोरों को भी धकेलने में जुट गये..
ऊपर से बच्चों को फ़ैल नहीं करना, डराना नहीं, पोषाहार खिलाना आदि के चक्कर में उलझा के पूरा भट्टा ही बैठा डाला.. शिक्षा में गिराव अपने उच्चतम स्तर पर है..
आठवीं के बच्चे को जोड़-बाकी और किताब पढना नहीं आता चूँकि उसे फ़ैल नहीं करना था सो वह बिना मेहनत किये यहाँ तक आ गया..
भय बिन पढाई ?? मुश्किल है..
यहाँ एक छोटा सा डाटा देना चाहूँगा की मैंने बारहवीं कक्षा सीकर के घोर सरकारी श्री कल्याण विद्यालय से उतीर्ण करी थी और उस ही वर्ष में मेरे साथ बारहवीं उतीर्ण करने वाले छात्रों में से लगभग तीस लड़कों ने MBBS करी है.. तो BDS/Pharmacy/Nursing/IIT/NIT/Engg. जैसी पता नहीं कितनी डिग्री तो उस एक वर्ष के लड़कों ने कर ली होगी.. चूँकि यह विद्यालय अपने छात्रों की संख्या बढ़ाके पैसे बनाने की मशीन नहीं है सो पूर्ण डाटा उपलब्ध नहीं है वरना तो गाँव वार डाटा प्राइवेट स्कूल और कोचिंग वाले अखबार के पूरे पूरे पेज में छाप छाप कर नाक में दम कर लेते हैं... ऐसी स्कूलों से निकले सफल छात्रों की अगर कोई अलुमनी मीटिंग बुलाई जाए तो शायद एक स्टेडियम भी छोटा पड़ेगा..
तो क्या एक मेरिट या दो-चार अच्छे छोरों की फोटो चिपकाने से अच्छी शिक्षा की गारंटी मिलती है ?
हाल ही में सीकर प्रवास के दौरान मुझे वहां की शिक्षा व्यवस्था से रूबरू होने का मौका मिला..
चौंकाने वाली स्थिति थी..
भोले लोग जेब में अपनी पसीने की कमाई का पैसा डालके यह पूछते हैं की भई वो डॉक्टर बनाने वाली कोचिंग कहाँ है.. अख़बार में पढ़ा था की वहां से बहुत डॉक्टर बनते हैं.. हमको भी इस छोरे को बनाना है.. पैसे लाये हैं..
पढाई में ज्यादा होशियार तो नहीं है.. पर अख़बार में पढ़ा था की यहाँ आ गये तो पक्का डाक्टर बन जाओगे..
पैसे जमा.. स्तरहीन कोचिंग शिक्षकों के चंगुल में फंस जाता है और दो सौ-ढाई सौ की कक्षा में खो जाता है... यहाँ वो ही लोग शिक्षक व मालिक बणे हुए हैं जो खुद डॉक्टर या इंजीनियर की परीक्षा उतीर्ण नहीं कर पाए थे..
एक और बेरोजगार बढ़ गया..
कुकुरमुत्तों की भांति खुले स्तरहीन, दिखाऊ, तड़क भड़क वाले स्कूल और कोचिंग शेखावाटी में भयंकर बेरोजगारी बढाने में लगे हुए हैं.. शेखावाटी खतरे में हैं.. यहाँ का बचपन, युवा पीढ़ी और भविष्य खतरे में है !
ज्यादा पढ़ा खेत में काम भी नहीं करता.. शेखावाटी में शिक्षा के चक्कर में बारहवीं तक कोई भी छात्र/छात्रा खेत/रसोई में नहीं जाता.. नहाया धोया जाए भी कैसे ?
पूर्ण पढाई के बाद नौकरी नहीं मिलने की स्थिति में खेत में जाके तेज तावड़े में फावड़ा चलाना उसके बस की बात नहीं रह पाती.. क्यूंकि उसे तो आराम, स्मार्टफोन, बोलेरो, महीने के लाख रुपये की ख्वाहिश लग गयी है..
यह उसे अपराध की और धकेलता है.. दारू के ठेकों में फॉर्म डलवाता है !
कुछ स्कूल अच्छी शिक्षा भी देते हैं परन्तु सामान्य लोगों की पहुँच से दूर है, ज्यादा प्रचार भी आड़े आता है..
ज्यादा प्रचार और प्रचार में दिये गये झूटे आंकड़ों के मोह में छात्र फंसता चला जाता है..
अभी सीकर में कुछ साथियों से हुए डिस्कशन में एक अजीब बात का पता चला की एक विख्यात कोचिंग ने अकबर में एड दिया की IIT में 1st Rank.. Surprising !
पता ही नहीं चला की यार कब सीकर से आल इंडिया में पहली रैंक आ गयी ? गर्व की बात है यह तो..
फिर खुलासा हुआ की उक्त बंदा अनुसूचित जनजाति(ST) में था और ऊपर से विकलांग और था..
उसकी आल ओवर रैंक सोलह हजार कुछ थी.. बणा दिया ना बावळा..
अख़बार में तो बहुत बड़ा प्रचार किया था की प्रथम रैंक यहाँ से.. यह है वो है..
यह बात तो पढ़े लिखों को समझ नहीं आती.. 
जमाना ही प्रचार और दिखावे का है..

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