Monday, August 25, 2014

शेखावाटी : शिक्षा, प्रचार और सच्चाई !

सुबह सुबह अख़बार उठाता हूँ..
शेखावाटी से करीब पांच सौ किलोमीटर दूर, गुजरात सीमा से सटे इलाके में अपनी जमीं की एक छोटी सी खबर को ये आँखें पूरे अख़बार में खोजती हैं..
पन्ने पलटता हूँ तो देखता हूँ की एक पूरा पेज शेखावाटी की शिक्षा को समर्पित है..
गर्व होता है शेखावाटी की शिक्षा पर 
चार-पांच प्रसिद्द स्कूलों के बारे में डीटेल्स, उनके धांसू परिणाम ये दिखाते हुए की देखो हमारे यहाँ से कितनी सारी मेरिट आई हुई हैं..
वे डाइरेक्ट एक मेरिट को पूरी स्कूल के परिणाम से जोड़ते हुए आँखों में धुल सी झोंकते दिखते हैं..
शेखावाटी की शिक्षा को देखते हुए जितना गर्व होता उस से कहीं ज्यादा कहीं दुःख भी होता है, कुछ चीजें कचोटती हैं..
अगर पढने वाले बच्चों की संख्या और उनकी विलक्षण प्रतिभा को देखते हुए सबसे कम सफलता शेखावाटी के छात्रों को प्राप्त होती हैं जैसे की अगर बीकानेर के किसी विद्यालय में सौ में से आठ छात्र अस्सी प्रतिशत से ज्यादा अंक अर्जित करते हैं तो शेखावाटी में सौ में से कोई बीस पच्चीस छात्र अस्सी से ज्यादा बना लेंगें परन्तु आगे कम्पीटिशन में जाते ही ये पच्चीस छात्र उन आठ के मुकाबले कहीं नहीं ठहरते हैं.
स्कूल वाले बच्चों को नब्बे से ऊपर प्रतिशत देते हैं.. घरवाले खुश की क्या बेटा अवतरित हुआ है घर में..
नाम रोशन करेगा... फुल फीस देते हैं..
और एक दिन आता है जब असल में कम्पीटिशन आता है.. धांय !
एक और बेरोजगार बढ़ गया..
तब आँखे खुलती हैं पर यह नहीं समझते की जो दिखाऊ अंक दिये गये थे वो तो वास्तव में फीस बटोरने के चक्कर में थे.. अगर कोई ईमानदार अध्यापक उसे उसकी योग्यतानुसार सौ में से पचास अंक देकर उसे ज्यादा पढाई हेतु कहता तो घरवालों को लगता की अरे पचास अंक ? पढ़ाते नहीं है.. स्कूल चेंज !!
एक तो छोरा गया ऊपर से पढ़ाई नहीं करवाने का तमगा...
गुरूजी को आदेश मिलता है की गुरूजी अगर आप हमारी संस्था में गुरूजी बने रहना चाहते हैं तो किसी भी बच्चे को नब्बे से कम अंक ना देवें.. चाहे उसके तीस ही आ रहे हों...
शेखावाटी में शिक्षा का जो बूम आया है, हर कोई पढाई के पीछे पड़ गया है, सरकारी नौकरी ड्रीम बन गया है..
गरीब मजदूर किसान अमीर सभी अपने नौनिहालों को शिक्षा के मार्फ़त नौकरी ,पैसा व सुरक्षित भविष्य दिलवाकर अपना भविष्य व बुढ़ापा सुरक्षित करना चाहते हैं और काफी हद तक यह सच भी है की नौकरीशुदा बेटा खुद को व अपने परिवारजनों को थोड़ा अच्छा जीवन से सकता है..
आम आदमी के इसी स्वपन को भुनाने के लिए कुकुरमुत्तों की तरह प्राइवेट स्कूल पनप गये, परन्तु पनपे इन स्कूलों में ज्यादातर अध्यापक ऐसे ही होते हैं जो या तो उन्हीं के परिवार के लोग/रिश्तेदार होते हैं जो बेरोजगार होते हैं और खुद की स्कूल में ही मास्टर लग के बेरोजगारी का दाग धोते हैं, बाकि भी स्तरहीन स्टाफ रखते हैं जो चंद पैसों में अपनी योग्यतानुसार “पढाते” है..
क्या कभी आपने स्कूल के ब्रांड नेम से आगे जाकर यह पूछा की यहाँ पढ़ाने वाले कौन हैं ?
जनता को यह लगने लगा की सुबह सुबह नहाके अच्छी सी पोशाक, जूते पहनके, बैग, सुंदर किताबें लेके, बस में बैठके जाने वाला और अंग्रेजी में ‘गुड मोर्निंग सर’ बोलने वाला बच्चा निश्चित ही सरकारी नेकर पहनके, पाटी लेके, पैदल जाने वाले, खेलने में ज्यादा मग्न रहने वाले और ‘प्रणाम गुरूजी’ कहने वाले छोरे से कहीं ज्यादा होशियार होता होगा और भविष्य में ज्यादा कमाल दिखाता होगा... क्या दिखाता है ?
इसी प्राइवेटाईजेशन के चक्कर में सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या घटी, शायद शिक्षक भी इसी फिराक में थे..
वो प्रोपर्टी डीलर बन गये.. बाकी बचे छोरों को भी धकेलने में जुट गये..
ऊपर से बच्चों को फ़ैल नहीं करना, डराना नहीं, पोषाहार खिलाना आदि के चक्कर में उलझा के पूरा भट्टा ही बैठा डाला.. शिक्षा में गिराव अपने उच्चतम स्तर पर है..
आठवीं के बच्चे को जोड़-बाकी और किताब पढना नहीं आता चूँकि उसे फ़ैल नहीं करना था सो वह बिना मेहनत किये यहाँ तक आ गया..
भय बिन पढाई ?? मुश्किल है..
यहाँ एक छोटा सा डाटा देना चाहूँगा की मैंने बारहवीं कक्षा सीकर के घोर सरकारी श्री कल्याण विद्यालय से उतीर्ण करी थी और उस ही वर्ष में मेरे साथ बारहवीं उतीर्ण करने वाले छात्रों में से लगभग तीस लड़कों ने MBBS करी है.. तो BDS/Pharmacy/Nursing/IIT/NIT/Engg. जैसी पता नहीं कितनी डिग्री तो उस एक वर्ष के लड़कों ने कर ली होगी.. चूँकि यह विद्यालय अपने छात्रों की संख्या बढ़ाके पैसे बनाने की मशीन नहीं है सो पूर्ण डाटा उपलब्ध नहीं है वरना तो गाँव वार डाटा प्राइवेट स्कूल और कोचिंग वाले अखबार के पूरे पूरे पेज में छाप छाप कर नाक में दम कर लेते हैं... ऐसी स्कूलों से निकले सफल छात्रों की अगर कोई अलुमनी मीटिंग बुलाई जाए तो शायद एक स्टेडियम भी छोटा पड़ेगा..
तो क्या एक मेरिट या दो-चार अच्छे छोरों की फोटो चिपकाने से अच्छी शिक्षा की गारंटी मिलती है ?
हाल ही में सीकर प्रवास के दौरान मुझे वहां की शिक्षा व्यवस्था से रूबरू होने का मौका मिला..
चौंकाने वाली स्थिति थी..
भोले लोग जेब में अपनी पसीने की कमाई का पैसा डालके यह पूछते हैं की भई वो डॉक्टर बनाने वाली कोचिंग कहाँ है.. अख़बार में पढ़ा था की वहां से बहुत डॉक्टर बनते हैं.. हमको भी इस छोरे को बनाना है.. पैसे लाये हैं..
पढाई में ज्यादा होशियार तो नहीं है.. पर अख़बार में पढ़ा था की यहाँ आ गये तो पक्का डाक्टर बन जाओगे..
पैसे जमा.. स्तरहीन कोचिंग शिक्षकों के चंगुल में फंस जाता है और दो सौ-ढाई सौ की कक्षा में खो जाता है... यहाँ वो ही लोग शिक्षक व मालिक बणे हुए हैं जो खुद डॉक्टर या इंजीनियर की परीक्षा उतीर्ण नहीं कर पाए थे..
एक और बेरोजगार बढ़ गया..
कुकुरमुत्तों की भांति खुले स्तरहीन, दिखाऊ, तड़क भड़क वाले स्कूल और कोचिंग शेखावाटी में भयंकर बेरोजगारी बढाने में लगे हुए हैं.. शेखावाटी खतरे में हैं.. यहाँ का बचपन, युवा पीढ़ी और भविष्य खतरे में है !
ज्यादा पढ़ा खेत में काम भी नहीं करता.. शेखावाटी में शिक्षा के चक्कर में बारहवीं तक कोई भी छात्र/छात्रा खेत/रसोई में नहीं जाता.. नहाया धोया जाए भी कैसे ?
पूर्ण पढाई के बाद नौकरी नहीं मिलने की स्थिति में खेत में जाके तेज तावड़े में फावड़ा चलाना उसके बस की बात नहीं रह पाती.. क्यूंकि उसे तो आराम, स्मार्टफोन, बोलेरो, महीने के लाख रुपये की ख्वाहिश लग गयी है..
यह उसे अपराध की और धकेलता है.. दारू के ठेकों में फॉर्म डलवाता है !
कुछ स्कूल अच्छी शिक्षा भी देते हैं परन्तु सामान्य लोगों की पहुँच से दूर है, ज्यादा प्रचार भी आड़े आता है..
ज्यादा प्रचार और प्रचार में दिये गये झूटे आंकड़ों के मोह में छात्र फंसता चला जाता है..
अभी सीकर में कुछ साथियों से हुए डिस्कशन में एक अजीब बात का पता चला की एक विख्यात कोचिंग ने अकबर में एड दिया की IIT में 1st Rank.. Surprising !
पता ही नहीं चला की यार कब सीकर से आल इंडिया में पहली रैंक आ गयी ? गर्व की बात है यह तो..
फिर खुलासा हुआ की उक्त बंदा अनुसूचित जनजाति(ST) में था और ऊपर से विकलांग और था..
उसकी आल ओवर रैंक सोलह हजार कुछ थी.. बणा दिया ना बावळा..
अख़बार में तो बहुत बड़ा प्रचार किया था की प्रथम रैंक यहाँ से.. यह है वो है..
यह बात तो पढ़े लिखों को समझ नहीं आती.. 
जमाना ही प्रचार और दिखावे का है..

# # # #

Saturday, June 18, 2011

याद आई है !

बहुत दिन हुए इधर पधारे की आप शायद भूल भी गए होंगे !
पर कोई नहीं जान है तो जहान है, वापस से याद आ जावेंगे !
फिर से राम राम :)

जब से ये फेसबुक का जमाना आया है वापस से ब्लोगिंग को थोड़ी सी दिक्कत हुई है, चूँकि कई प्रसिद्द स्तंभकार आजकाल केवल फेसबुक पे देखे जाते हैं !
वैसे उनका सपना अपना स्वार्थ साधने का है !
वास्तविक स्तंभकार अभी भी अपने ब्लोग्स से जुड़े हुए है जिनकी झलकी मैं समय समय पे लेता रहता हूँ !
बहुत से लोग बाग तो खुद को ट्रेडमार्क मानने लगे हैं ...
खैर उनके अपने लफड़े हैं ... अपने को क्या !

राजस्थान की तपती गरमी ने बहुत झुलसाया है या कहो तो तपाया है और तपना ही जिंदगी है !
जित्ता जल्दी तप लो उत्ता बढ़िया !
अब मानसून की आस जगी है.. आराम सा आने वाला है !
मौसम विभाग से अच्छी भविष्यवाणी तो गांव के ताऊ कर लेते हैं ..
अगर कभी मौसम विभाग ने कहा की भयंकर बारिश आएगी तो तेज धुप निश्चित है :)

किसानों के हाल हमेशा की भांति बेकार रहे हैं, पिछले दिनों गांव गया तब एक काका जी इस साल हुए घाटे का हिसाब लगा रहे थे :(
बदन जलाऊ गरमी में रीजने के सौ रुपये नहीं मिल पाते एक दिन में ... ठंडी ए सी में धीमे धीमे बोलने वाले शाहब लोग कुछ हजार ले जाते हैं घंटों की कुर्सीतोड़ी से ...
क्या योजना बन रहीं हैं अपने लिए वो तो भगवन जाने पर भरोसा इसी बात पे है की -
'इंसान भूखा जगता है पर जहाँ तक संभव हो कुछ खा, पीके ही सोता है '.... सो चिल्ल मारो !!

राम राम 

Friday, August 13, 2010

मैं हूँ बिजी ...

राम राम साय जी !

बहुत दिन हुए नेट पे आये और कुछ लिखे ..हमेशा ये ही सोचता रहा ही मैं तो बिजी हूँ !!
कल सोचा की भाई तू इतना भी कहाँ बिजी है की अपने साथियों के हाल चाल भी न पूछे तो आज फटाफट से इधर बापर गया हूँ !!
शायद आदमी अपनी ज़िन्दगी में हर पल ही ये सोचता रहता है की वो बिजी है ... और जब उसके ठाले होने का वक़्त आता है तो वो शायद उसका अंतिम समय ही होता है ...
मैं तो आज इसी बात से घबराकर इधर आया हूँ और मौज-मस्ती के अन्य कामों में भी लूम गया हूँ....
क्या पता कब वो ठाले होने का टेम आ जाए हेहेहेहे !!
एक तो अपने साथ गलत बात ये की है भगवन ने, की हमें बताके नहीं भेजा की भाया तेरे हिस्से में कितने दिन लिखे हैं ... वरना  उस हिसाब से सब काम एडजस्ट कर लेते ....
अभी पचीस साल तो कैरियर बनाने में लग गए...और चारों तरफ देखते हैं तो लगता है की भाया अभी तो बहुत काम और करने होंगे...ये उम्र तो इसी टंटे में निकल गयी दिखती है ...
खैर जो भी है ये तो मुझे सबकी ही परेशानी दिखती है... है न ?
अजी चिंता मत कीजिये फुर्सत का भी टेम आएगा... मेरी तरह आप भी इंतज़ार कीजिये उसका ...
आएगा नहीं तो जाएगा कहाँ !!
तो इधर सब मौज है आजकल, अच्छी बारिश हो रही राजस्थान में पर सरकार को भरोसा था की मह नहीं आएगा सो उन्होंने कोई तैयारी नहीं की थी पहले से सो इस चक्कर में जयपुर ने एक घंटे की बारिश में ही बाढ़ के दर्शन भी कर लिए हैं , कोलेजों में भी बढ़िया राजनीती फल-फूल रही है, रोज बीस-तीस छात्र भूख हड़ताल पे ही रहते हैं उधर !!
सब चंगा है ....
वैसे मैंने भी आजकल बिजी होने के कुछ बढ़िया तरीके तलाश लिए हैं ....उधर ही लगा हूँ ...
जय खाटू श्याम जी की !!
राम राम सा...अठे ही हाँ याद कर लीज्यो !!

Tuesday, May 18, 2010

ठेकेदार ...... अजी हम नहीं हैं !!

राम राम सा ...

पिछली वाली पोस्ट पर आपके घणे कमेंट्स मिले और उनके ही कारण मुझमे ये पोस्ट लिखने की हिम्मत बापरी है !!
कुछ लोग कहते हैं की "सुनो सब की और करो अपने मन की", भई मैं तो सबकी सुनता हूँ और उसी के हिसाब से ही करता हूँ  सो कृपया अपने विचार जरूर रखें ...
लास्ट की पोस्ट कबूल है में श्रीमान सारस्वत जी और सुर्यपाल जी* ने सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करने के बारे में बताया था ..
तो श्रीमान जी आपकी बात तो बहुत ही बढ़िया है और हमें इस पर चर्चा करनी ही चाहिए पर क्या अपनी ये चर्चा कुछ महत्व रखती है ??
मुझे तो लगता है की अपने इस समाज में इन मुद्दों के बारे में चर्चा करने, प्लान बनाने और उन्हें लागू करने करने के लिए पहले से ही 'ठेकेदार' बैठे हैं !
बैठे क्या हैं उन्होंने इन तरह के सभी पद रोक रखे हैं की अपन जैसे लोगो के पास देखने के सिवा शायद ही कुछ बचा है...
छोटी से छोटी परेशानी के लिए बड़ा से बड़ा पैनल बनाया जाता है, बहुत से मंथन होते हैं, नक़्शे बनते हैं, जोड़-तोड़ होता है, भरपूर पैसा आता है और अंत में वो परेशानी कितनीक मिटती है वो आपसे छुपा हुआ नहीं है..
कुल मिलाके इन मुद्दों के बारे में घणी सारी "चर्चाएँ" चल रही हैं तो अपन लोगों को चिंता की जरुरत नहीं है !
पर हाँ अपने पास फिर भी कुछ बातें हैं जो अपन कर भी सकते हैं और करनी भी चाहिए ..
अभी भी कुछ गंभीर सामाजिक परेशानियाँ हैं जो इन ठेकेदारों की नजर से दूर हैं पर वे काफी घातक हैं ..
वैसे मेरी इस पोस्ट को शायद सौ से भी कम लोग पढेंगे पर अगर पांच भी साथी इस पर विचार करेंगे तो मैं अपनी इस पोस्ट को लिखने में बिताये वक़्त को सफल मानूंगा !

इस वर्तमान समय की सबसे घातक वाली परेशानी है "मोबाइल" और लगभग हर आदमी इसकी चपेट में है..
कुछ साथी सोच रहे होंगे की यार ये भी कोई परेशानी है क्या, ये तो बढ़िया चीज है जो सेकंड्स में हजारों मील दूर बैठे आदमी से बात करवा देती है, गाने भी सुनाती है, फोटू भी खींचे जा सकते हैं और नहीं तो कम से कम एक महंगा वाला मोबाइल खरीदकर 'चोक' तो मार ही सकते हैं !
हाँ ये फायदे तो मैं भी मानता हूँ पर दस साल पहले के उस वक़्त को याद कीजिये जब आप चैन की नींद लिया करते थे, अब तो कोई भी आधी रात को टन-टनाट करवा देता है.
तब तो घर से निकलने के बाद बस फ्री.. घरवाले बेसिक फोन पे कहते की 'अजी वो तो अभी अभी तो घर से निकल गये हैं शाम को आते ही बोल देंगे' और तब भी सभी काम हुआ करते थे !
झूठ का सबसे बड़ा कारोबार भी इसी से हो रहा है ... पहले कम से कम घर बैठे ये तो नहीं कह सकते थे ना की जयपुर आया हुआ हूँ ...
अब तो घर में आदमियों से ज्यादा मोबाइल होने लगे हैं, SIM तो थोक के भाव मिल रही हैं, एक बंदा हमारे हॉस्टल के बाहर बैठा रहता है उसे बस एक फोटो और ID चाहिए और आपको वो फटाफट से एक मुफ्त वाली SIM दे देगा जिसमे बीस रुपये अलग से मिलेंगे... गजब है !
लगता है थोड़े दिन बाद जेबतराशों की जगह जेबभराश हुआ करेंगे जो चुपके से आपकी जेब में सिम डालकर खिसक लेंगे :)
मेरा एक साथी कुछ महीने पहले कोई दस SIM लाया और पता चला की उनमे पहले से ही खूब रुपये भरे हुए हैं, वो दिन में पता नहीं कितनी बार उनको बारी बारी से निकालने और घालने में ही लगा रहता !
एक दिन मैं दूकान पे मोबाइल रिफिल करवाने गया तो वहां एक ताऊ भी अपने वाले को करवा रहा था..
ताऊ दुकान वाले को बोला "भाया महाली भैंस न भी घाली" ...
मैंने सोचा यार ये क्या लफड़ा है सो मैंने ताऊ से तुरंत इस बाबत पूछा (वैसे मेरी ताउओं से बढ़िया बनती है) तब ताऊ ने बताया की "आ मोबाइल इयांकी भैंस है जकी न तो दूध देवे अर न ही पोठो(गोबर), बस खाय ही खाय है" !!
बहुत से दस साल से छोटे बच्चों के पास भी खुद के मोबाइल हैं अब ये आप ही बताइए की वो इसका क्या करते हैं..
मेरे ताऊ जी का पोता, जो की इतना छोटा है की अभी स्कूल जाना भी चालु नहीं किया है, एक दिन ताऊ जी को आके बोलता है की "दादा जी इने(कुछ था शायद कोई फोटो) डिलीट करके देओ" ... ताऊ जी ने कहा बेटा दादा तो खुद डिलीट हुआ बैठा है किसी और से ही करवा !!

स्कूल में पढने वाले बच्चों के पास बढ़िया वाले मोबाइल होते हैं( सिम्पल वाला तो उनके पापा रखते हैं) और इनके मुख्य उपयोग हैं - चटपटे SMS आदान-प्रदान, अश्लील MMS एवं क्लिप्स का ब्लूटूथ से प्रसार !!
अब बहुत ही कम उम्र में उनसे ये छिपा हुआ नहीं है की इन कपड़ों के पीछे क्या है और बाकी सब कुछ कैसे क्या होता है !
पर अभी हम इनके भविष्य में आने वाले घातक प्रभावों से अनभिज्ञ हैं..
और उनके होने वाले मानसिक विघटन का पता चलना बहुत मुश्किल है पर ये निश्चित ही उनको पढ़ाई से तो दूर धकेलता जाएगा...
कहा जाता था की बाल मन सबसे शुद्ध और निर्मल होता है पर अब ये शायद इतिहास बनने वाला है..
कह रहे हैं की जमाना मोडर्न हो रहा है,.. पर भई इस तरह का मोडर्न हमें तो नहीं चाहिए ...
बाहर से कितने भी मोडर्न हो लो, चाहे जो खाओ, पहनो, करो पर कम से कम अपने दिल-दिमाग को तो स्वच्छ रखो..
रिश्तों की मर्यादा का भंग होना और बहुत तरह के यौन अपराध इसके मुख्य एवं वर्तमान परिणाम हैं जो अपने सामने हैं...
क्या आप चाहते हैं की कोई अपना प्रिय बालक आगे चलकर ऐसे कृत्यों को अंजाम देवे ..

अजी ये पोस्ट तो कुछ ज्यादा ही लम्बी खिंच गयी मैं तो इसे तुरंत निपटाने वाला था ....पर कोई नहीं !
कुल मिलाके बहुत से पेरेंट्स को तो पता भी नहीं है की उनके नौनिहाल के पास मोबाइल है भी ... वो तो इससे ओल्ले में बहुत कुछ कर रहे हैं !
कईयों का तो पूरी रात-रात भर व्यस्त बताता है पता नहीं नेटवर्क की खराबी से बताता है या कोई और ही लफड़ा चलता है :)

सो जनाब अपने आस पास के माहौल पे नजर रखें ... आपकी एक छोटी सी चूक किसी की पूरी ज़िन्दगी बर्बाद कर सकती है !
अपने खुद के मोबाइल को भी बच्चों की पहुँच रखें ..
It's not explosive or any kind of poison but many time it have many contents that are harmful to ur kins n also for u !!
और आप खुद समझदार हैं .... :)
माहौल गंभीर हो गया जनाब वैसे मामला है भी गंभीर ... चलो आपको एक बात बता दूँ की जब मैं ये पोस्ट लिख रहा हूँ तब मेरे यहाँ एक गाना अनवरत बज रहा है और ये मेरा फेवरेट राजस्थानी गाना है ..
आप भी ये गाना सुनें ताकि माहौल हल्का हो जाए Click here 2 Download !!
और सब बढ़िया है .. और हम कमेंट्स सेक्सन में मिलते रहेंगे ... धन्यवाद जी !!

राम राम सा .. Social Doc जीतू बगड़िया !

                    http://jitubagria.blogspot.com/

:)

Friday, April 16, 2010

कबूल है ..

राम राम साय ॥
हेल्लो हाय ... और भी समस्त तरह के बातचीत प्रारम्भक :)

आपने सोचा होगा की ये अकेला अकेला ही क्या कबूल कर रहा है तो श्रीमानजी हम कबूल कर रहे हैं अपनी गलती !
गलती ये है की हमने आपसे 1 वादा किया था कि लिखते रहेंगे पर आज कई दिनों से शक्ल दिखाई है इसका कारण ये हैं कि इस दरमियान मेरे साथ 1 हादसा हो गया था जो कि लगभग सभी के साथ मार्च-अप्रेल में होता ही है तो इस हादसे (जो कि 1 पहेली बन चूका है आपके लिए) का दुखद वृतांत तो मैं आपको फिर किसी दिन बताऊंगा !

आज तो 1 ताज़ा ताजा वृतांत ही बता देता हूँ ...
अभी पिछले सप्ताह ही मुझे मुंबई घूमने का मौका मिला और आज सुबह ही वापस वहीँ से लौटा हूँ !
अभी तक ट्रेन कि टें टें आवाज़ कानों में गूँज रही है सो सोचा कि मैं अपनी कुछ टें टें आपको भी सुना दूँ ताकि मेरी टें टें में कुछ तो कमी आये :P !

ट्रेन में यात्रा करने से पहले कम से कम आपको एडवांस में ही टिकट जरूर बनवा लेना चाहिए वरना फिर TT के सामने सीट एडजस्ट करने के लिए काफी गिडगिडाना पड़ता है और TT जो भाव खाता है उसका क्या कहना ॥
तब तो एक ही बात दिमाग में आती है कि आदमी को कोई कलेक्टर या SP नहीं बल्कि TT होना चाहिए ...
कुल मिलके हम 2 जनों को 500 रूपया अतिरिक्त जुर्माना देने के बाद 2 स्टेंडिंग सीट मिल गयी और ये स्टेंडिंग सीट हमें काफी ढूंढने के बाद भी कहीं नहीं मिली और हम तक स्टेंड करते रहे रहे जब तक कि एक भले आदमी ने हमें एक सीट पे एडजस्ट नहीं कर दिया...और काफी जुगाड़ के बाद हम सुबह मुंबई में थे !

मुंबई जाने के ये मेरा पहला सुखद (दुखद) अनुभव था और वहां जो सबसे पहली चीज नजर आती है वो है भीड़ !!
ऐसा लगता है जैसे पास में ही कोई मेला लगा हुआ है या किसी नेता कि कोई सभा है और इन लोगों को 50-50 रुपये देकर बुलाया गया हो !
मुंबई का सबसे प्रथम दर्शनीय स्थल है वहां कि लोकल ट्रेन !!
हर तीन मिनट में ट्रेन चलती है फिर भी हर ट्रेन को देखकर ऐसा लगता है कि 4 ट्रेनों के यात्री 1 ट्रेन में घुस आये हों, कुलमीलाके आपको तो ट्रेन के आस-पास ही पहुंचना होता है क्यूंकि ट्रेन के अन्दर पहुंचाने का काम तो आपके चारों तरफ कि भीड़ अपने आप कर देती है और जब तक होश संभाला ट्रेन के अन्दर पाया !!

भयंकर गर्मी, ह्यूमिडिटी और भीड़ के बीच हमारा जो ऐसा हाल हुआ कि मुंबई घुमने का पूरा सपना काफूर हो गया ,सोचा कि यहीं से वापस जयपुर के लिए निकटतम ट्रेन पकड़ लेते हैं !
पसीने से लथपथ हम मेरे परम सखा कपिल ढाका के फ्लेट पर पहुंचे जो कि मुंबई कि 1 करोड़ से ज्यादा कि जनता के बीच हमारा अकेला जानकार था और होस्ट भी !
पता नहीं उसने इस बड़े शहर में में जाकर पैसा कमाया है या नहीं पर मुझे उसके पास जो चीज सबसे ज्यादा पसंद आई वो थी कमरे को अत्यंत ठंडा करने वाली वैज्ञानिक निर्मित मशीन AC !
फिर तो हमने तुरंत ही उसको न्यूनतम तापमान पर सेट करके अपने आपको एक रजाई से कुछ पतली कम्बल में छुपा लिया और तब मुझे इन वैज्ञानिकों के आविष्कारों के महत्व का ज्ञान हुआ...
और हमने इस दौरे का कोई 60 फीसदी समय इस यन्त्र कि छाँव में ही गुजारा और यहाँ हमारा साथ दिया हुकुम के इक्के और गधा-पीश नामक गेम ने !

बाहर रोड पे किसी से हमने पूछा कि भाई यहाँ कोई घुमने कि जगह तो बताना तो वो गुस्से से भर उठा और बडबडाने लगा कि "जब से इस कमबख्त ***** सरकार ने डांस बारों को बंद किया है कुछ घुमने लायक बचा ही नहीं है " हेहेहे !!
फिर उसने हमें मरीन ड्राइव, जुहू बीच, गेटवे ऑफ़ इंडिया आदि कुछ जगह के नाम गिनाये और फिर हमने इन सब जगह का अपनी आँखों और दिल दिमाग से पूरा मुवायना किया ... लगा कि अंग्रेज और राजे-महाराजाओं ने बहुत कुछ छोड़ा है हमारे लिए विरासत में...देखते हैं कि कितने दिन और बचे रहते हैं ये स्तम्भ !!

एक रेस्टोरेंट में पानी कि बोतल के 110 रुपये देखके काफी अजीब लगा, अगर ये बात मैं अपने गाँव में जाकर बताऊंगा तो लोग मुझपे हँसेंगे और कहेंगे कि तुने शायद एक जीरो ज्यादा पढ़ लिया होगा !!

और जिस slumdog millionaire नामक फिल्म पर यहाँ के बड़े बड़े लोग चिल्ला रहे थे कि मुंबई को गन्दा दिखा कर बदनाम कर रहे हैं, सच में उस फिल्म में तो बहुत कम दिखाया गया था !
वहां अपर जिनके पास पैसा है उनके पास खर्च करने को जगह नहीं है और जिनके पास रोटी नहीं हैं उनको मरने के के लिए 2 गज जमीन भी नहीं है शायद इसीलिए ही मुंबई को पता नहीं क्या क्या कहा जाता है !!

खैर अब मैं अपने हॉस्टल वाले कमरे में बैठा-बैठा खट-पट कर रहा हूँ .... काफी देर हो गयी लिखते लिखते अब बाहर थडी पे एक कट चाय पीके आता हूँ फिर लिखने के अलावा भी बहुत काम हैं करने को !!

राम राम साय !!

Monday, November 02, 2009

लिखना जरुरी है क्या ??

राम राम सायं ॥
ब्लोगिंग की दुनिया के बुजुर्गो को नमन ...
अब आप कहेंगे की पहले की पोस्ट में तो नमन नही किया इस बार क्या हुआ है !
तो हुआ ये की हमने ब्लॉग पे इक अकाउंट बना तो लिया पर बाद में पता चला की,
यार मैंने न तो कभी हिन्दी पढ़ी है और न ही मैं किसी भी प्रकार का लेखल हूँ॥
मैं तो एकदम फिसड्डी हूँ...
तब मुझे नियमित ब्लॉग लिखने वालो की महानता का ज्ञान हुआ है !

अब तक मैंने भले लोगो क ब्लॉग पे कमेन्ट लिखने का ही काम किया है...
एक दिन तो मैंने १ बहुत ही विख्यात ब्लॉग पे तुक्के से पहला कमेंट ड़ाल दिया और
मुझे इससे भी बड़ा अच्छा महसूस हुआ ।
और हाँ इसी दरम्यान मुझे ब्लॉग पे फोटू जोड़ने इत्यादि का भी थोड़ा ज्ञान हो गया है सो मैंने एक फोटू भी लगा दी है।

मैं तो इन्ही प्रकार के उक्चूक कार्यों में व्यस्त था की श्रीमान Ratan Singh Shekhawat ने मेरी पहली पोस्ट पे एक तमाचा मार दिया की अजी लिखना तो चालु कीजिये ।

अब मैं बड़ा घबराया हुआ हूँ की कहाँ से चालु करूँ और कहाँ ख़तम करूँ...
फ़िर सोचा की चालु तो कर देते हैं जहाँ पूरी तरह से थक जायेंगे वहीँ पोस्ट कर देंगे ।
पर मैंने भी अब ठान लिया है की कुछ न कुछ लिखते ही रहेंगे ।
क्योंकि सुना है की जिसको कुछ भी लिखना नही आता जब वो लिखता ही तो जनता चाहे मजाक में पढ़े या
नयेपन के चक्कर में पर पढ़ती जरूर है ।

धन्यवाद -
जीतू बगङिया

Tuesday, September 29, 2009

सुरूआत..

राम राम साय ....
अभी कोई २-३ साल ही शायद हुए हैं जब से ब्लॉग का सिस्टम चला है या हो सकता है की पुराना हो ,
पर मेरी नजर में तो ये उसी वक्त आया था ॥
सुनते और पढ़ते थे की "फलाना जी" ने अपने ब्लॉग में ' कुछ ' लिखा है...
हालाँकि मेरे यहाँ तक जो ब्लोगिंग की न्यूज़ आती हैं वो सामान्यतया अभिनेता , अभिनेत्री की होती हैं ...
एक श्रीमान दुसरे के बारे में कुछ भला बुरा कहते हैं तो दूसरा अपने वाले ब्लॉग में वापस आग उगलता है ...
अभी तक मेरी जानकारी में येही कुछ था॥
और हाँ मुझे १ बात जरूर सता रही है की वो श्रीमान तो काफ़ी "फेमस" हैं सो जनता उनके ब्लॉग तक पहुँच जाती है ,पर मुझ जैसे अज्ञात के ब्लॉग पर कौन अपनी नजर डालने में वक्त बर्बाद करेगा !!
इस मामले में मैं सोशल नेट्वर्किंग साइट्स से काफी प्रभावित हूँ जहाँ आप इधर उधर काफ़ी लोगो से जुड़ सकते हैं और अपनी बात कह भी सकते हैं ....
और हाँ मैं श्रीमान रामकुमार की कडवासरा को जरूर धन्यवाद दूंगा , जिनके माध्यम से मैं यहाँ इस ब्लोगिंग के माहोल में आया ...