Friday, August 13, 2010

मैं हूँ बिजी ...

राम राम साय जी !

बहुत दिन हुए नेट पे आये और कुछ लिखे ..हमेशा ये ही सोचता रहा ही मैं तो बिजी हूँ !!
कल सोचा की भाई तू इतना भी कहाँ बिजी है की अपने साथियों के हाल चाल भी न पूछे तो आज फटाफट से इधर बापर गया हूँ !!
शायद आदमी अपनी ज़िन्दगी में हर पल ही ये सोचता रहता है की वो बिजी है ... और जब उसके ठाले होने का वक़्त आता है तो वो शायद उसका अंतिम समय ही होता है ...
मैं तो आज इसी बात से घबराकर इधर आया हूँ और मौज-मस्ती के अन्य कामों में भी लूम गया हूँ....
क्या पता कब वो ठाले होने का टेम आ जाए हेहेहेहे !!
एक तो अपने साथ गलत बात ये की है भगवन ने, की हमें बताके नहीं भेजा की भाया तेरे हिस्से में कितने दिन लिखे हैं ... वरना  उस हिसाब से सब काम एडजस्ट कर लेते ....
अभी पचीस साल तो कैरियर बनाने में लग गए...और चारों तरफ देखते हैं तो लगता है की भाया अभी तो बहुत काम और करने होंगे...ये उम्र तो इसी टंटे में निकल गयी दिखती है ...
खैर जो भी है ये तो मुझे सबकी ही परेशानी दिखती है... है न ?
अजी चिंता मत कीजिये फुर्सत का भी टेम आएगा... मेरी तरह आप भी इंतज़ार कीजिये उसका ...
आएगा नहीं तो जाएगा कहाँ !!
तो इधर सब मौज है आजकल, अच्छी बारिश हो रही राजस्थान में पर सरकार को भरोसा था की मह नहीं आएगा सो उन्होंने कोई तैयारी नहीं की थी पहले से सो इस चक्कर में जयपुर ने एक घंटे की बारिश में ही बाढ़ के दर्शन भी कर लिए हैं , कोलेजों में भी बढ़िया राजनीती फल-फूल रही है, रोज बीस-तीस छात्र भूख हड़ताल पे ही रहते हैं उधर !!
सब चंगा है ....
वैसे मैंने भी आजकल बिजी होने के कुछ बढ़िया तरीके तलाश लिए हैं ....उधर ही लगा हूँ ...
जय खाटू श्याम जी की !!
राम राम सा...अठे ही हाँ याद कर लीज्यो !!

Tuesday, May 18, 2010

ठेकेदार ...... अजी हम नहीं हैं !!

राम राम सा ...

पिछली वाली पोस्ट पर आपके घणे कमेंट्स मिले और उनके ही कारण मुझमे ये पोस्ट लिखने की हिम्मत बापरी है !!
कुछ लोग कहते हैं की "सुनो सब की और करो अपने मन की", भई मैं तो सबकी सुनता हूँ और उसी के हिसाब से ही करता हूँ  सो कृपया अपने विचार जरूर रखें ...
लास्ट की पोस्ट कबूल है में श्रीमान सारस्वत जी और सुर्यपाल जी* ने सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करने के बारे में बताया था ..
तो श्रीमान जी आपकी बात तो बहुत ही बढ़िया है और हमें इस पर चर्चा करनी ही चाहिए पर क्या अपनी ये चर्चा कुछ महत्व रखती है ??
मुझे तो लगता है की अपने इस समाज में इन मुद्दों के बारे में चर्चा करने, प्लान बनाने और उन्हें लागू करने करने के लिए पहले से ही 'ठेकेदार' बैठे हैं !
बैठे क्या हैं उन्होंने इन तरह के सभी पद रोक रखे हैं की अपन जैसे लोगो के पास देखने के सिवा शायद ही कुछ बचा है...
छोटी से छोटी परेशानी के लिए बड़ा से बड़ा पैनल बनाया जाता है, बहुत से मंथन होते हैं, नक़्शे बनते हैं, जोड़-तोड़ होता है, भरपूर पैसा आता है और अंत में वो परेशानी कितनीक मिटती है वो आपसे छुपा हुआ नहीं है..
कुल मिलाके इन मुद्दों के बारे में घणी सारी "चर्चाएँ" चल रही हैं तो अपन लोगों को चिंता की जरुरत नहीं है !
पर हाँ अपने पास फिर भी कुछ बातें हैं जो अपन कर भी सकते हैं और करनी भी चाहिए ..
अभी भी कुछ गंभीर सामाजिक परेशानियाँ हैं जो इन ठेकेदारों की नजर से दूर हैं पर वे काफी घातक हैं ..
वैसे मेरी इस पोस्ट को शायद सौ से भी कम लोग पढेंगे पर अगर पांच भी साथी इस पर विचार करेंगे तो मैं अपनी इस पोस्ट को लिखने में बिताये वक़्त को सफल मानूंगा !

इस वर्तमान समय की सबसे घातक वाली परेशानी है "मोबाइल" और लगभग हर आदमी इसकी चपेट में है..
कुछ साथी सोच रहे होंगे की यार ये भी कोई परेशानी है क्या, ये तो बढ़िया चीज है जो सेकंड्स में हजारों मील दूर बैठे आदमी से बात करवा देती है, गाने भी सुनाती है, फोटू भी खींचे जा सकते हैं और नहीं तो कम से कम एक महंगा वाला मोबाइल खरीदकर 'चोक' तो मार ही सकते हैं !
हाँ ये फायदे तो मैं भी मानता हूँ पर दस साल पहले के उस वक़्त को याद कीजिये जब आप चैन की नींद लिया करते थे, अब तो कोई भी आधी रात को टन-टनाट करवा देता है.
तब तो घर से निकलने के बाद बस फ्री.. घरवाले बेसिक फोन पे कहते की 'अजी वो तो अभी अभी तो घर से निकल गये हैं शाम को आते ही बोल देंगे' और तब भी सभी काम हुआ करते थे !
झूठ का सबसे बड़ा कारोबार भी इसी से हो रहा है ... पहले कम से कम घर बैठे ये तो नहीं कह सकते थे ना की जयपुर आया हुआ हूँ ...
अब तो घर में आदमियों से ज्यादा मोबाइल होने लगे हैं, SIM तो थोक के भाव मिल रही हैं, एक बंदा हमारे हॉस्टल के बाहर बैठा रहता है उसे बस एक फोटो और ID चाहिए और आपको वो फटाफट से एक मुफ्त वाली SIM दे देगा जिसमे बीस रुपये अलग से मिलेंगे... गजब है !
लगता है थोड़े दिन बाद जेबतराशों की जगह जेबभराश हुआ करेंगे जो चुपके से आपकी जेब में सिम डालकर खिसक लेंगे :)
मेरा एक साथी कुछ महीने पहले कोई दस SIM लाया और पता चला की उनमे पहले से ही खूब रुपये भरे हुए हैं, वो दिन में पता नहीं कितनी बार उनको बारी बारी से निकालने और घालने में ही लगा रहता !
एक दिन मैं दूकान पे मोबाइल रिफिल करवाने गया तो वहां एक ताऊ भी अपने वाले को करवा रहा था..
ताऊ दुकान वाले को बोला "भाया महाली भैंस न भी घाली" ...
मैंने सोचा यार ये क्या लफड़ा है सो मैंने ताऊ से तुरंत इस बाबत पूछा (वैसे मेरी ताउओं से बढ़िया बनती है) तब ताऊ ने बताया की "आ मोबाइल इयांकी भैंस है जकी न तो दूध देवे अर न ही पोठो(गोबर), बस खाय ही खाय है" !!
बहुत से दस साल से छोटे बच्चों के पास भी खुद के मोबाइल हैं अब ये आप ही बताइए की वो इसका क्या करते हैं..
मेरे ताऊ जी का पोता, जो की इतना छोटा है की अभी स्कूल जाना भी चालु नहीं किया है, एक दिन ताऊ जी को आके बोलता है की "दादा जी इने(कुछ था शायद कोई फोटो) डिलीट करके देओ" ... ताऊ जी ने कहा बेटा दादा तो खुद डिलीट हुआ बैठा है किसी और से ही करवा !!

स्कूल में पढने वाले बच्चों के पास बढ़िया वाले मोबाइल होते हैं( सिम्पल वाला तो उनके पापा रखते हैं) और इनके मुख्य उपयोग हैं - चटपटे SMS आदान-प्रदान, अश्लील MMS एवं क्लिप्स का ब्लूटूथ से प्रसार !!
अब बहुत ही कम उम्र में उनसे ये छिपा हुआ नहीं है की इन कपड़ों के पीछे क्या है और बाकी सब कुछ कैसे क्या होता है !
पर अभी हम इनके भविष्य में आने वाले घातक प्रभावों से अनभिज्ञ हैं..
और उनके होने वाले मानसिक विघटन का पता चलना बहुत मुश्किल है पर ये निश्चित ही उनको पढ़ाई से तो दूर धकेलता जाएगा...
कहा जाता था की बाल मन सबसे शुद्ध और निर्मल होता है पर अब ये शायद इतिहास बनने वाला है..
कह रहे हैं की जमाना मोडर्न हो रहा है,.. पर भई इस तरह का मोडर्न हमें तो नहीं चाहिए ...
बाहर से कितने भी मोडर्न हो लो, चाहे जो खाओ, पहनो, करो पर कम से कम अपने दिल-दिमाग को तो स्वच्छ रखो..
रिश्तों की मर्यादा का भंग होना और बहुत तरह के यौन अपराध इसके मुख्य एवं वर्तमान परिणाम हैं जो अपने सामने हैं...
क्या आप चाहते हैं की कोई अपना प्रिय बालक आगे चलकर ऐसे कृत्यों को अंजाम देवे ..

अजी ये पोस्ट तो कुछ ज्यादा ही लम्बी खिंच गयी मैं तो इसे तुरंत निपटाने वाला था ....पर कोई नहीं !
कुल मिलाके बहुत से पेरेंट्स को तो पता भी नहीं है की उनके नौनिहाल के पास मोबाइल है भी ... वो तो इससे ओल्ले में बहुत कुछ कर रहे हैं !
कईयों का तो पूरी रात-रात भर व्यस्त बताता है पता नहीं नेटवर्क की खराबी से बताता है या कोई और ही लफड़ा चलता है :)

सो जनाब अपने आस पास के माहौल पे नजर रखें ... आपकी एक छोटी सी चूक किसी की पूरी ज़िन्दगी बर्बाद कर सकती है !
अपने खुद के मोबाइल को भी बच्चों की पहुँच रखें ..
It's not explosive or any kind of poison but many time it have many contents that are harmful to ur kins n also for u !!
और आप खुद समझदार हैं .... :)
माहौल गंभीर हो गया जनाब वैसे मामला है भी गंभीर ... चलो आपको एक बात बता दूँ की जब मैं ये पोस्ट लिख रहा हूँ तब मेरे यहाँ एक गाना अनवरत बज रहा है और ये मेरा फेवरेट राजस्थानी गाना है ..
आप भी ये गाना सुनें ताकि माहौल हल्का हो जाए Click here 2 Download !!
और सब बढ़िया है .. और हम कमेंट्स सेक्सन में मिलते रहेंगे ... धन्यवाद जी !!

राम राम सा .. Social Doc जीतू बगड़िया !

                    http://jitubagria.blogspot.com/

:)

Friday, April 16, 2010

कबूल है ..

राम राम साय ॥
हेल्लो हाय ... और भी समस्त तरह के बातचीत प्रारम्भक :)

आपने सोचा होगा की ये अकेला अकेला ही क्या कबूल कर रहा है तो श्रीमानजी हम कबूल कर रहे हैं अपनी गलती !
गलती ये है की हमने आपसे 1 वादा किया था कि लिखते रहेंगे पर आज कई दिनों से शक्ल दिखाई है इसका कारण ये हैं कि इस दरमियान मेरे साथ 1 हादसा हो गया था जो कि लगभग सभी के साथ मार्च-अप्रेल में होता ही है तो इस हादसे (जो कि 1 पहेली बन चूका है आपके लिए) का दुखद वृतांत तो मैं आपको फिर किसी दिन बताऊंगा !

आज तो 1 ताज़ा ताजा वृतांत ही बता देता हूँ ...
अभी पिछले सप्ताह ही मुझे मुंबई घूमने का मौका मिला और आज सुबह ही वापस वहीँ से लौटा हूँ !
अभी तक ट्रेन कि टें टें आवाज़ कानों में गूँज रही है सो सोचा कि मैं अपनी कुछ टें टें आपको भी सुना दूँ ताकि मेरी टें टें में कुछ तो कमी आये :P !

ट्रेन में यात्रा करने से पहले कम से कम आपको एडवांस में ही टिकट जरूर बनवा लेना चाहिए वरना फिर TT के सामने सीट एडजस्ट करने के लिए काफी गिडगिडाना पड़ता है और TT जो भाव खाता है उसका क्या कहना ॥
तब तो एक ही बात दिमाग में आती है कि आदमी को कोई कलेक्टर या SP नहीं बल्कि TT होना चाहिए ...
कुल मिलके हम 2 जनों को 500 रूपया अतिरिक्त जुर्माना देने के बाद 2 स्टेंडिंग सीट मिल गयी और ये स्टेंडिंग सीट हमें काफी ढूंढने के बाद भी कहीं नहीं मिली और हम तक स्टेंड करते रहे रहे जब तक कि एक भले आदमी ने हमें एक सीट पे एडजस्ट नहीं कर दिया...और काफी जुगाड़ के बाद हम सुबह मुंबई में थे !

मुंबई जाने के ये मेरा पहला सुखद (दुखद) अनुभव था और वहां जो सबसे पहली चीज नजर आती है वो है भीड़ !!
ऐसा लगता है जैसे पास में ही कोई मेला लगा हुआ है या किसी नेता कि कोई सभा है और इन लोगों को 50-50 रुपये देकर बुलाया गया हो !
मुंबई का सबसे प्रथम दर्शनीय स्थल है वहां कि लोकल ट्रेन !!
हर तीन मिनट में ट्रेन चलती है फिर भी हर ट्रेन को देखकर ऐसा लगता है कि 4 ट्रेनों के यात्री 1 ट्रेन में घुस आये हों, कुलमीलाके आपको तो ट्रेन के आस-पास ही पहुंचना होता है क्यूंकि ट्रेन के अन्दर पहुंचाने का काम तो आपके चारों तरफ कि भीड़ अपने आप कर देती है और जब तक होश संभाला ट्रेन के अन्दर पाया !!

भयंकर गर्मी, ह्यूमिडिटी और भीड़ के बीच हमारा जो ऐसा हाल हुआ कि मुंबई घुमने का पूरा सपना काफूर हो गया ,सोचा कि यहीं से वापस जयपुर के लिए निकटतम ट्रेन पकड़ लेते हैं !
पसीने से लथपथ हम मेरे परम सखा कपिल ढाका के फ्लेट पर पहुंचे जो कि मुंबई कि 1 करोड़ से ज्यादा कि जनता के बीच हमारा अकेला जानकार था और होस्ट भी !
पता नहीं उसने इस बड़े शहर में में जाकर पैसा कमाया है या नहीं पर मुझे उसके पास जो चीज सबसे ज्यादा पसंद आई वो थी कमरे को अत्यंत ठंडा करने वाली वैज्ञानिक निर्मित मशीन AC !
फिर तो हमने तुरंत ही उसको न्यूनतम तापमान पर सेट करके अपने आपको एक रजाई से कुछ पतली कम्बल में छुपा लिया और तब मुझे इन वैज्ञानिकों के आविष्कारों के महत्व का ज्ञान हुआ...
और हमने इस दौरे का कोई 60 फीसदी समय इस यन्त्र कि छाँव में ही गुजारा और यहाँ हमारा साथ दिया हुकुम के इक्के और गधा-पीश नामक गेम ने !

बाहर रोड पे किसी से हमने पूछा कि भाई यहाँ कोई घुमने कि जगह तो बताना तो वो गुस्से से भर उठा और बडबडाने लगा कि "जब से इस कमबख्त ***** सरकार ने डांस बारों को बंद किया है कुछ घुमने लायक बचा ही नहीं है " हेहेहे !!
फिर उसने हमें मरीन ड्राइव, जुहू बीच, गेटवे ऑफ़ इंडिया आदि कुछ जगह के नाम गिनाये और फिर हमने इन सब जगह का अपनी आँखों और दिल दिमाग से पूरा मुवायना किया ... लगा कि अंग्रेज और राजे-महाराजाओं ने बहुत कुछ छोड़ा है हमारे लिए विरासत में...देखते हैं कि कितने दिन और बचे रहते हैं ये स्तम्भ !!

एक रेस्टोरेंट में पानी कि बोतल के 110 रुपये देखके काफी अजीब लगा, अगर ये बात मैं अपने गाँव में जाकर बताऊंगा तो लोग मुझपे हँसेंगे और कहेंगे कि तुने शायद एक जीरो ज्यादा पढ़ लिया होगा !!

और जिस slumdog millionaire नामक फिल्म पर यहाँ के बड़े बड़े लोग चिल्ला रहे थे कि मुंबई को गन्दा दिखा कर बदनाम कर रहे हैं, सच में उस फिल्म में तो बहुत कम दिखाया गया था !
वहां अपर जिनके पास पैसा है उनके पास खर्च करने को जगह नहीं है और जिनके पास रोटी नहीं हैं उनको मरने के के लिए 2 गज जमीन भी नहीं है शायद इसीलिए ही मुंबई को पता नहीं क्या क्या कहा जाता है !!

खैर अब मैं अपने हॉस्टल वाले कमरे में बैठा-बैठा खट-पट कर रहा हूँ .... काफी देर हो गयी लिखते लिखते अब बाहर थडी पे एक कट चाय पीके आता हूँ फिर लिखने के अलावा भी बहुत काम हैं करने को !!

राम राम साय !!