राम राम साय ॥
हेल्लो हाय ... और भी समस्त तरह के बातचीत प्रारम्भक :)
आपने सोचा होगा की ये अकेला अकेला ही क्या कबूल कर रहा है तो श्रीमानजी हम कबूल कर रहे हैं अपनी गलती !
गलती ये है की हमने आपसे 1 वादा किया था कि लिखते रहेंगे पर आज कई दिनों से शक्ल दिखाई है इसका कारण ये हैं कि इस दरमियान मेरे साथ 1 हादसा हो गया था जो कि लगभग सभी के साथ मार्च-अप्रेल में होता ही है तो इस हादसे (जो कि 1 पहेली बन चूका है आपके लिए) का दुखद वृतांत तो मैं आपको फिर किसी दिन बताऊंगा !
आज तो 1 ताज़ा ताजा वृतांत ही बता देता हूँ ...
अभी पिछले सप्ताह ही मुझे मुंबई घूमने का मौका मिला और आज सुबह ही वापस वहीँ से लौटा हूँ !
अभी तक ट्रेन कि टें टें आवाज़ कानों में गूँज रही है सो सोचा कि मैं अपनी कुछ टें टें आपको भी सुना दूँ ताकि मेरी टें टें में कुछ तो कमी आये :P !
ट्रेन में यात्रा करने से पहले कम से कम आपको एडवांस में ही टिकट जरूर बनवा लेना चाहिए वरना फिर TT के सामने सीट एडजस्ट करने के लिए काफी गिडगिडाना पड़ता है और TT जो भाव खाता है उसका क्या कहना ॥
तब तो एक ही बात दिमाग में आती है कि आदमी को कोई कलेक्टर या SP नहीं बल्कि TT होना चाहिए ...
कुल मिलके हम 2 जनों को 500 रूपया अतिरिक्त जुर्माना देने के बाद 2 स्टेंडिंग सीट मिल गयी और ये स्टेंडिंग सीट हमें काफी ढूंढने के बाद भी कहीं नहीं मिली और हम तक स्टेंड करते रहे रहे जब तक कि एक भले आदमी ने हमें एक सीट पे एडजस्ट नहीं कर दिया...और काफी जुगाड़ के बाद हम सुबह मुंबई में थे !
मुंबई जाने के ये मेरा पहला सुखद (दुखद) अनुभव था और वहां जो सबसे पहली चीज नजर आती है वो है भीड़ !!
ऐसा लगता है जैसे पास में ही कोई मेला लगा हुआ है या किसी नेता कि कोई सभा है और इन लोगों को 50-50 रुपये देकर बुलाया गया हो !
मुंबई का सबसे प्रथम दर्शनीय स्थल है वहां कि लोकल ट्रेन !!
हर तीन मिनट में ट्रेन चलती है फिर भी हर ट्रेन को देखकर ऐसा लगता है कि 4 ट्रेनों के यात्री 1 ट्रेन में घुस आये हों, कुलमीलाके आपको तो ट्रेन के आस-पास ही पहुंचना होता है क्यूंकि ट्रेन के अन्दर पहुंचाने का काम तो आपके चारों तरफ कि भीड़ अपने आप कर देती है और जब तक होश संभाला ट्रेन के अन्दर पाया !!
भयंकर गर्मी, ह्यूमिडिटी और भीड़ के बीच हमारा जो ऐसा हाल हुआ कि मुंबई घुमने का पूरा सपना काफूर हो गया ,सोचा कि यहीं से वापस जयपुर के लिए निकटतम ट्रेन पकड़ लेते हैं !
पसीने से लथपथ हम मेरे परम सखा कपिल ढाका के फ्लेट पर पहुंचे जो कि मुंबई कि 1 करोड़ से ज्यादा कि जनता के बीच हमारा अकेला जानकार था और होस्ट भी !
पता नहीं उसने इस बड़े शहर में में जाकर पैसा कमाया है या नहीं पर मुझे उसके पास जो चीज सबसे ज्यादा पसंद आई वो थी कमरे को अत्यंत ठंडा करने वाली वैज्ञानिक निर्मित मशीन AC !
फिर तो हमने तुरंत ही उसको न्यूनतम तापमान पर सेट करके अपने आपको एक रजाई से कुछ पतली कम्बल में छुपा लिया और तब मुझे इन वैज्ञानिकों के आविष्कारों के महत्व का ज्ञान हुआ...
और हमने इस दौरे का कोई 60 फीसदी समय इस यन्त्र कि छाँव में ही गुजारा और यहाँ हमारा साथ दिया हुकुम के इक्के और गधा-पीश नामक गेम ने !
बाहर रोड पे किसी से हमने पूछा कि भाई यहाँ कोई घुमने कि जगह तो बताना तो वो गुस्से से भर उठा और बडबडाने लगा कि "जब से इस कमबख्त ***** सरकार ने डांस बारों को बंद किया है कुछ घुमने लायक बचा ही नहीं है " हेहेहे !!
फिर उसने हमें मरीन ड्राइव, जुहू बीच, गेटवे ऑफ़ इंडिया आदि कुछ जगह के नाम गिनाये और फिर हमने इन सब जगह का अपनी आँखों और दिल दिमाग से पूरा मुवायना किया ... लगा कि अंग्रेज और राजे-महाराजाओं ने बहुत कुछ छोड़ा है हमारे लिए विरासत में...देखते हैं कि कितने दिन और बचे रहते हैं ये स्तम्भ !!
एक रेस्टोरेंट में पानी कि बोतल के 110 रुपये देखके काफी अजीब लगा, अगर ये बात मैं अपने गाँव में जाकर बताऊंगा तो लोग मुझपे हँसेंगे और कहेंगे कि तुने शायद एक जीरो ज्यादा पढ़ लिया होगा !!
और जिस slumdog millionaire नामक फिल्म पर यहाँ के बड़े बड़े लोग चिल्ला रहे थे कि मुंबई को गन्दा दिखा कर बदनाम कर रहे हैं, सच में उस फिल्म में तो बहुत कम दिखाया गया था !
वहां अपर जिनके पास पैसा है उनके पास खर्च करने को जगह नहीं है और जिनके पास रोटी नहीं हैं उनको मरने के के लिए 2 गज जमीन भी नहीं है शायद इसीलिए ही मुंबई को पता नहीं क्या क्या कहा जाता है !!
खैर अब मैं अपने हॉस्टल वाले कमरे में बैठा-बैठा खट-पट कर रहा हूँ .... काफी देर हो गयी लिखते लिखते अब बाहर थडी पे एक कट चाय पीके आता हूँ फिर लिखने के अलावा भी बहुत काम हैं करने को !!
राम राम साय !!